Description
अपराजिता एक लता जातीय बूटी है जो जो की वन उपवनो में विभिन्न वृक्षों या तारों के सहारे उर्ध्वगामी होकर सदा हरी भरी रहती है |यह समस्त भारत में पाई जाती है ,इसकी विशेष उपयोगिता बंगाल में दुर्गा देवी तथा काली देवी की पूजा के अवसर पर स्पष्ट दर्शित होती है |नवरात्रादी के विशिष्ट अवसर पर नौ वृक्षों की टहनियों की पूजा में एक अपराजिता भी होती है |
अपराजिता के ऊपर बहुत ही सौन्दर्यमयी पुष्प खिले रहते है ,गर्मी के कुछ दिनों को छोड़कर शेष पुरे वर्ष यह लता पुष्पों का श्रृंगार किये रहती है |अपराजिता पुष्प भेद के कारण दो प्रकार की होती है नीले पुष्प वाली तथा श्वेत पुष्प वाली |नीले पुष्प वाली को कृष्ण कांता और श्वेत पुष्प वाली को विष्णु कांता कहते हैं |अपराजिता का पुष्प सीप की भांति आगे की तरफ गोलाकार होते हुए पीछे की तरफ संकुचित होता चला जाता है |पुष्प के मध्य में एक और पुष्प होता है जो की स्त्री की योनी की भांति होता है |संभवतः इसी कारण इसे तंत्र शास्त्रों में भगपुष्पी या योनीपुष्पा का भी नाम दिया गया है | नीले पुष्प वाली भगपुष्पा के भी दो भेद हैं ,इकहरे पुष्प वाली और दोहरे पुष्प वाली |
अपराजिता की जड़ को विधिवत आमंत्रित कर पूजित कर धारण करने से भूत प्रेत की समस्या और ग्रह दोषों का निवारण होता है |अपराजिता का उपयोग प्रसव को सुगम बनाने ,वृश्चिक दंश में ,भूत बाधा में ,गर्भ धारण में ,चोरों -बाघों से रक्षा में ,प्रबल वशीकरण करने में होता है |
सुगम प्रसव और अपराजिता
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प्रसव के समय कष्ट से तड़पती या मरणासन्न हुई गर्भवती स्त्री की कटी में श्वेत अपराजिता की लता लाकर लपेट देने से कष्ट का समापन हो जाता है और प्रसव में सुगमता हो जाती है |
वृश्चिक दंश और अपराजिता
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जब बिच्छु काट ले तो दंशित स्थल पर ऊपर से नीचे की तरफ श्वेत अपराजिता की जड़ को रगड़े और उसी तरफ वाले हाथ में इसकी जड़ दबा दें तो कुछ समय में विष उतर जाता है |
भूत बाधा और अपराजिता
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कृष्ण कांता या नीली अपराजिता की जड़ को नीले कपडे में लपेटकर शनिवार वाले दिन रोगी के कंठ में पहना दे तो लाभ होता है |इसके साथ ही इसके पत्ते और नीम के पत्तों की धुप दी जाए या इनका रस निकालकर एकसार करके नाक में टपका देने से आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है |
गर्भधारण में अपराजिता का उपयोग
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प्रायः किसी न किसी कारण से यौवनमयी कामिनियाँ चाहते हुए भी गर्भ धारण नहीं कर पाती जिस कारण मानहानि की भी स्थिति आती रहती है ,कभी कभी तो बाँझ भी मान लिया जाता है |ऐसी स्त्रियाँ नीली अपराजिता की जड़ को काली बकरी के शुद्ध दूध में पीसकर मासिक रजोस्राव की समाप्ति पर स्नान के पश्चात् पी लें और सारे दिन भगवान् कृष्ण की बाल रूप में पूजा करते हुए व्रत रखें और रात्री को गर्भधारण के हेतु पति के साथ सहवास करें तो गर्भ की सम्भावना बन सकती है |
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